उपन्यास >> रोमियो जूलियट और अँधेरा रोमियो जूलियट और अँधेरानिर्मल वर्मा
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यान ओत्वेनाशेक का प्रसिद्ध उपन्यास रोमियों जूलियट और आँधेरा सन् 1958 में चेक भाषा में लिखा गया था और मात्र 6 वर्ष बाद सन् 1964 में इसका मूल चेक से हिन्दी में निर्मल वर्मा द्वारा अनुवाद प्रकाशित भी हो गया था।
द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में किशोर वय के प्रेमियों की कोमल-करुण गाथा शुरू होती है, जिसमें ईसाई लड़का एक यहूदी लड़की को अपने पढ़ने की कोठरी में छिपा देता है, ताकि वह कांसन्ट्रेशन कैंप भेजे जाने से बच जाये। धीरे-धीरे कोठरी से बाहर का जीवन कोठरी के भीतर के जीवन से इतना घुल-मिल जाते हैं कि एक ही प्रश्न बचा रहता है-स्वतन्त्रता क्या है ? पृथ्वी पर जीवन के मानी क्या हैं ?
कई सूक्ष्म स्तरों पर उपन्यास इसी विषय पर लिखी एक दूसरी प्रसिद्ध पुस्तक डायरी ऑफ़ ऐन फ्रेंक की याद दिलाता चलता है।
एक लम्बे समय तक यूरोप हिटलर द्वारा किये गये यहूदियों के सामूहिक नर-संहार का सामना नहीं कर पाया – न बौद्धिक स्तर पर न काल्पनिक स्तर। यूरोपीय साहित्य में इस विषय के कथानकों की बहुतायत इसी बेचैनी को रेखांकित करती आयी है। हिन्दी साहित्य में पहले-पहल यहूदी नर-संहार की पीठिका निर्मल वर्मा के चेक अनुवादों ने ही बनायी – यहाँ यह लक्षित करना आवश्यक जान पड़ता है।
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